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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Tragedy

खेत बेचकर पल्सर ले ली

खेत बेचकर पल्सर ले ली

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बदल दिया परिदृश्य गाँव का, फैशन की अँगड़ाई ने ।

खेत बेंचकर पल्सर ले ली, बुद्धा और कन्हाई ने ।।


मुन्नी जीन्स पहनकर घूमे, लौटन की फटफटिया पर ।

सेल्फी लेती नई बहुरिया, द्वारे बैठी खटिया पर ।

लाज,शर्म,घूँघट,खा डाला, इस टीवी हरजाई ने......।।


धोती-कुर्ते संदूको में, धूल समय की फाँक रहे।

कोट पैंट डींगे सदरी से, ऊँची-ऊँची हाँक रहे।

सीट अँगौछे की हथिया ली, मूँछ ऐंठकर टाई ने...।।


मोढ़े, मचिया, पलँग, मसहरी, चौकी अंतर्ध्यान हुए ।

डबल बेड, सोफ़ा से'ट, चेयर, टेबल घर की शान हुए ।

बचा स्वयं को लिया जुगत से, गद्दे और रजाई ने.....।।


इमली, जामुन, महुआ, पाकड़, एक एक कर काट दिए ।

कुएं, बावली, ताल,तलैया, पोखर सारे पाट दिए ।

पछुआ से अनुबन्ध कर लिया, जाने क्यों पुरवाई ने....।।


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