खेत बेचकर पल्सर ले ली
खेत बेचकर पल्सर ले ली
बदल दिया परिदृश्य गाँव का, फैशन की अँगड़ाई ने ।
खेत बेंचकर पल्सर ले ली, बुद्धा और कन्हाई ने ।।
मुन्नी जीन्स पहनकर घूमे, लौटन की फटफटिया पर ।
सेल्फी लेती नई बहुरिया, द्वारे बैठी खटिया पर ।
लाज,शर्म,घूँघट,खा डाला, इस टीवी हरजाई ने......।।
धोती-कुर्ते संदूको में, धूल समय की फाँक रहे।
कोट पैंट डींगे सदरी से, ऊँची-ऊँची हाँक रहे।
सीट अँगौछे की हथिया ली, मूँछ ऐंठकर टाई ने...।।
मोढ़े, मचिया, पलँग, मसहरी, चौकी अंतर्ध्यान हुए ।
डबल बेड, सोफ़ा से'ट, चेयर, टेबल घर की शान हुए ।
बचा स्वयं को लिया जुगत से, गद्दे और रजाई ने.....।।
इमली, जामुन, महुआ, पाकड़, एक एक कर काट दिए ।
कुएं, बावली, ताल,तलैया, पोखर सारे पाट दिए ।
पछुआ से अनुबन्ध कर लिया, जाने क्यों पुरवाई ने....।।
