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Akhtar Ali Shah

Tragedy

3  

Akhtar Ali Shah

Tragedy

खेल और कालाधन

खेल और कालाधन

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कविता

खेल और कालाधन

*****

काले धन का खेलों पर अब,

ऐसा हुआ प्रहार।

नहीं जीत अब जीत रही है,

नहीं हार अब हार।

*

सदियों का इतिहास यही है,

इक जीते इक हारे।

होते थे मशहूर जगत में,

जीते हुए सितारे।

टिकट खरीदा करते थे,

मुश्किल में पड़ बेचारे।

टिकट बेचने वालों के,

होते थे वारे न्यारे।

परेशानियां खूब हुई पर,

हार कभी न मानी।

खूब बढ़ाते रहे हौसला,

खूब लुटाया प्यार।

काले धन का खेलों पर,

अब ऐसा हुआ प्रहार।

नहीं जीत अब जीत रही है,

नहीं हार अब हार।

*

आज पता पहले से रहता,

कौन जीतने वाला।

किसका होगा आखिर में,

परचम बुलंद-ओ-बाला।

मैच फिक्स कर लेते,

पहले से रमेश या लाला।

कितना ताकतवर बन बैठा,

है बोलो धन काला।

लिक्खे हैं इस धन ने लोगों,

रंगरलियों के किस्से।

और इसी के बल पर मनते,

हैं देखो त्यौहार।

काले धन का खेलों पर,

अब ऐसा हुआ प्रहार।

नहीं जीत अब जीत रही है,

नहीं हार अब हार।

*

आज हार स्वीकार कर रहे,

बड़े खिलाड़ी झुककर।

क्योंकि जीत नहीं दे पाती,

उनको सुख के सागर।

चकाचौंध ने उन्हें बनाया,

देखो आज गद्दार। 

पैसा माई बाप बना है,

लगता खुदा बराबर। 

फंस जाते हैं जाल में,

लालच के जो अंधे होकर।

मक्कारों ने कर डाला है,

उनका बंटा ढार।

काले धन का खेलों पर,

अब ऐसा हुआ प्रहार।

नहीं जीत अब जीत रही है,

नहीं हार अब हार। 

*

हो फुटबॉल भले या कोई,

"अनन्त" किसको छोड़ा।

कालेधन वाले चलते हैं,

करके सीना चौड़ा।

कुछ हाथों से निकल गया धन,

जो था लोगों जोड़ा।

धनवाले धनवान हो गए,

इतना खून निचोड़ा। 

घर में वायुयान उतरते,

इधर-उधर कुछ ऐसे।

छप्पर नही सिरों पर जिनके,

रहते हैं लाचार।

कालेधन का खेलों पर,

अब ऐसा हुआ प्रहार।

नहीं जीत अब जीत रही है ,

नहीं हार अब हार।

******

अख्तर अली शाह "अनंत "नीमच


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