खैर-ओ-ख़बर के लिए।
खैर-ओ-ख़बर के लिए।
शहर शहर घूमता हूं तेरी एक नजर के लिए।
हर सुबह यूं ही तैयार होता हूं एक अनजाने सफर के लिए ।।1।।
खामों खाँ नजरे उठती हैं महफिल में हर आने वाले पर।
काश दिख जाए तू यूं ही बस खैर-औ-खबर के लिए ।।2।।
थक कर नहीं है बैठे हम चलते चलते यूँ ही सफर में।
हमारा बैठना तो इंतजार है बस अपने रहबर के लिए ।।3।।
हम तो भूले मुसाफिर हैं अनजानी राहों के।
चल पड़ेंगे उधर किस्मत दे इशारा जिधर के लिए ।।4।।
यूं बेवजह कजः पढ़ना अच्छी बात नहीं।
जल्दी उठ जाया करो तुम नमाज ए फजर के लिए ।।5।।
इक सिसकती सी आवाज सुनते हैं पड़ोस के घर से।
मालूम हुआ इक माँ रोती है अलग हुए अपने पिसर के लिए ।।6।।
