कहां जिंदगी है
कहां जिंदगी है
जरा जमीन पर भी आइए ऊंचाइयों में ही कहां जिंदगी है
एक मेल तो से मिलिए तन्हाइयों में ही कहां जिंदगी है।
लोगों के दुख से रूबरू होना एक दुख की बात तो नहीं
चंद लम्हों की बजती शहनाइयों में ही कहां जिंदगी है।
उनको खौफ है कि भरी भीड़ में गुमनाम से खो जाएंगे
और दूर कहीं सिमटकर, खाइयों में ही कहां जिंदगी है।
झूठा लिबास ओढ़ कर दिलों पर राज कब तक रहेगा
दिमाग भी है, दिल की गहराइयों में ही कहां जिंदगी है।
ये पब्लिक है 'सिंधवाल' ये थोड़ा शोर तो करेगी ही
भलाई भी बाकी इधर बुराइयों में ही कहां जिंदगी है।