खामोशी
खामोशी
खामोशी रखकर मैं भटक गया हूंँ,
मन से बहुत मै तड़पता रहता हूंँ,
खामोशी रखकर पायमाल बना हूंँ,
खामोशी मुझ से छूटती ही नहीं।
खामोशी रखकर अपमानित हुआ हूंँ,
सर पे कलंक लेकर मै घूम रहा हूंँ,
खामोशी रखकर अब मायूस बना हूंँ,
खामोशी मेरे मन में हटती ही नहीं।
खामोश बनकर आंसु बहा रहा हूंँ,
जुल्म-सितम सहकर थक गया हूंँ,
खामोश रहकर बेकरार बन गया हूंँ,
खमोशी मेरा पीछा छोड़ती ही नहीं।
खमोशी को मैं अब छोड़ना चाहता हूंँ,
इंट का जवाब पत्थर से देना चाहता हूंँ,
कब तब खामोशी सहता रहेगा "मुरली",
अब ज्यादा खामोशी सह सकता नहीं।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया"मुरली" (ज़ुनागढ - गुजरात)
