खाली हाथ
खाली हाथ
उठती गिरती नज़रें अक्सर,
कहती कुछ खास हैं।
उन तिरछी सी मुस्कुराहटों के
मायने बेहिसाब हैं।
झुकी हुई नज़रों में कैद
कुछ अनकहे से अल्फ़ाज़ हैं।
दिल की धड़कनों में छुपे
इक नन्हे से दिल के
तमाम से राज़ हैं।
तेज़ कदमों से
भागती सी ज़िन्दगी की
अपनी ही एक रफ़्तार है।
जी लो हर लम्हे को इसके
इन लम्हों के भी हिसाब हैं ।
रहता सन्नाटे का पहरा
इस तेज़ रफ़्तार ज़िन्दगी में ।
उस सन्नाटे को चीरती
खुद अपनी ही
खामोश सी आवाज़ है।
चलते रहते ताउम्र हम
मंज़िलो की तलाश में ।
पहुँच जाते जब मंज़िल पे
तो होती हमको सिर्फ़
खुद अपनी ही तलाश है।।
सहेजते बहुत कुछ हम
खुद अपने हाथ से
पर जब खत्म होता है
सफर अपना
रह जाते हैं अकेले हम
और हमारे खाली हाथ हैं।