कहा मिलें
कहा मिलें
नैनों को तुरंत पढ़ लें..
ऐसी दिव्य चक्षु कहाँ मिले।
अश्रु को स्वर्ण बना लें..
ऐसा यथार्थ स्नेह कहाँ मिले।
होठों को तुरंत समझ लें..
ऐसा निर्मल मन कहाँ मिले।
श्वासों को शीघ्र जान लें..
ऐसी शुद्ध हवा कहाँ मिले।
अंग को नित्य हर्ष लें..
ऐसा उत्तम एहसास कहाँ मिले।
हृदय को निस्वार्थ स्पर्श लें..
ऐसी निच्छल प्रीत कहाँ मिले।
