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Nand Kumar

Classics

4.2  

Nand Kumar

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केवट मिलन

केवट मिलन

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पालन करने को बचन, पितु के श्री रघुनाथ ।

लखन सिया के सहित प्रभु, कीन्हो अवध अनाथ ।।


तजि पुर आए राम तहं, जहां निषाद निवास ।

प्रेम सहित गुह भेट्यो, कीन्ह तहां कछु वास ।।


पुनि गुह को निज संग लै, आए सुरसरि तीर ।

करि मज्जन शिरु नाइ प्रभु, बोले गिरा गम्भीर ।।


तव गुह दीन्ही केवटहि, ऊंची हांक लगाय ।

कर जोरे बिहसति निकट , केवट पहुंचो आय ।।


कह निषाद केवट सुनहु, यह है राजा राम ।

जाना इनको पार बस, है तुमसे यह काम ।।


कह केवट तुम का कहौ, जानौ इन कर भेद ।

उपल नारि भये पग परशि, जाने भेद न वेद ।।


मै मलीन अति मंद मति, मोहि शरन अब लेहु ।

पार चहत जो गयउ तौ, चरण कमल रज देहु ।।


प्रभु मुसुकाने देखि के, केवट प्रेम पुनीत ।

कहा करहु मन भाय सो, होहु न अब भयभीत ।।


सुनतहि आनि कठवता, लायउ सुरसरि नीर ।

मुदित पखारे चरन सब, मिटी ह्रदय की पीर ।।


राम लखन सिय के सहित, सो उतारि के पार ।

उतराई नहि लीन कह, प्रभु करियो भव पार ।।



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