केवट मिलन
केवट मिलन
पालन करने को बचन, पितु के श्री रघुनाथ ।
लखन सिया के सहित प्रभु, कीन्हो अवध अनाथ ।।
तजि पुर आए राम तहं, जहां निषाद निवास ।
प्रेम सहित गुह भेट्यो, कीन्ह तहां कछु वास ।।
पुनि गुह को निज संग लै, आए सुरसरि तीर ।
करि मज्जन शिरु नाइ प्रभु, बोले गिरा गम्भीर ।।
तव गुह दीन्ही केवटहि, ऊंची हांक लगाय ।
कर जोरे बिहसति निकट , केवट पहुंचो आय ।।
कह निषाद केवट सुनहु, यह है राजा राम ।
जाना इनको पार बस, है तुमसे यह काम ।।
कह केवट तुम का कहौ, जानौ इन कर भेद ।
उपल नारि भये पग परशि, जाने भेद न वेद ।।
मै मलीन अति मंद मति, मोहि शरन अब लेहु ।
पार चहत जो गयउ तौ, चरण कमल रज देहु ।।
प्रभु मुसुकाने देखि के, केवट प्रेम पुनीत ।
कहा करहु मन भाय सो, होहु न अब भयभीत ।।
सुनतहि आनि कठवता, लायउ सुरसरि नीर ।
मुदित पखारे चरन सब, मिटी ह्रदय की पीर ।।
राम लखन सिय के सहित, सो उतारि के पार ।
उतराई नहि लीन कह, प्रभु करियो भव पार ।।