कौन तुम
कौन तुम
कौन हो तुम रूपसी सुकुमार
आयी श्वेत परिधान से सजकर,
सिर पर चटक नारंगी चुनरी लिये
नत ग्रीवा लिये सिमटी खड़ी हो।
अपने उपवन के शिशु मोर को
क्या हार दिखाकर लुभा रही हो,
मोर भी समझता है इस बात को
यह उसका भोज्य सर्प नहीं माला है।
मोर चकित हो निहार रहा तुमको
लज्जावनता हो मोर से रही हो खेल
यह तुम्हारी ही वाटिका का मोर शिशु
हरियाली देख मित्र भाव से आया है।
कार्तिकेय का वाहन है मोर
कृष्ण के मुकुट में सजा मोरपंख
शुभ का कल्याण का दाता मोर
मनोरथ पूर्ति का वाहक होता मोर।
