कौन हूँ मैं......
कौन हूँ मैं......
यही कश्मकश में फसी हुई हूँ की कौन हूँ मैं,
क्या जाने कौन जानें इतनी परेशाँ क्यू हूँ मैं।
कभी लगता हैं की मैं सब जानती हूँ ,
फिर भी खुद से ये सवाल रहता है की कौन हूँ मैं।
कभी मुझे एकांत पसंद आता है,
फिर भी खुद मे एक भीड़ सी दिखती है।
कभी सोचती हूँ की हँसलू,
तो कभी रोना अच्छा लगता है।
कभी लगता है की सब अच्छे हैं,
तो कभी कोई अच्छा नही लगता है।
कभी गुस्सा आता है खुद पे,
तो कभी खुशी मिलती है।
कभी सोच सोच कर नींद उड़ जाती है,
तो कभी बिना सोचे ही नींद सुकूँ सी मिलती है।
कभी कभी सबपे विश्वास करने का मन करता है,
तो कभी कभी खुद पे ही भरोसा नी होता।
कभी लगता है मैं बहुत बोलती हूँ,
तो कभी लगता है की कुछ जादा ही मौन हूँ मैं।
मैं निसब्द हु कि क्या कहूँ,
कि कौन हूँ मैं कौन हूँ मैं।