ये वृक्ष नहीं वरदान है
ये वृक्ष नहीं वरदान है
क्या सोचता है तू अपने आप को ऐ इंसान,
तू भगवान नहीं इंसान है।
क्यों कटता है इन वृक्षों को,
ये वृक्ष नहीं वरदान है।
तू कहता है खुद को बड़ा,
टूट जायेगा गर इतना अभिमान है।
सब मोह की जाल मे हैं फँसे,
झुठी सबकी शान है।
मत भूल ऐ इंसान तेरी इस शान की खातिर,
इन वृक्षों ने दिया बलिदान है।
वो भी एक वक्त था जब इंसान कहा करते थे,
हमसे ज्यादा कीमती इन वृक्षों की जान है।
क्या किसीको याद नही,
इन वृक्षों को बचाने की खातिर अमृत बिस्नोइ ने दी अपनी जान है।
क्यु मिटाते हो इन वृक्षों को,
ये वृक्ष नहीं वरदान है।
सदी-सदी से इन वृक्षों की सेवा,
करते आये हम इंसान हैं।
कहाँ गये वो लोग जो कहा करते थें,
मत काटो इन वृक्षों को ये ये वृक्ष नहीं वरदान है।
कैसे चुकायेगा इन वृक्षों का एहसांन ऐ इंसान,
जो असल मे प्रकृति की शान हैं।