कौन हो तुम
कौन हो तुम
तुम कहते हो जान हूँ
मान लिया मैने
कुछ कहने को तुमने
छोड़ा ही नहीं।
कैसे हम कुछ कहे
समझ नहीं आता।
उलझन में फँस गया
कैसे निकलूँ मैं ।।
दिल दिमाग में अब
तुम ही बसते हो
सोये या जागे हम
पर तुम ही दिखते हो।
ऐसा मुझ को पहले
होता नहीं था।
अब क्यों मुझ को हो रहा,
कोई तो बतलाओ।।
बिन जान पहचान के
क्यों प्यार हो रहा
वर्षो से जाने उसे
ऐसा क्यों लग रहा।
नाम पता और शहर,
कुछ भी ज्ञात नहीं।
दिल में आ के बस गई
प्यारी सूरत तेरी।।
अब तो मैं खोज रहा
तेरी सूरत को
वर्षो से रह रही है
जो दिल में मेरे।
कैसे ढूंढे अब उसे
कोई तो बोलो।
सुनो मेरी बात को,
ध्यान लगाकर तुम।
कोई और नहीं है,
वो है आत्मा तेरी।।