मोहब्बत होकर भी न
मोहब्बत होकर भी न
क्यों नहीं बोली उन्हें,
अपने दिल की बात।
शायद वो भी यही,
सोचकर खामोश रहे।
कि कभी तो बोलेंगे,
अपने दिल की बात।
पर कह न सके क्यो ये बात,
कि हमें तुमसे मोहब्बत है।
समझ दोनों ही रहे थे,
की कौन करे इसका इजहार।
आज एकाएक फिर से,
मुलाकात उनसे हो गई।
देख उन्हें पुरानी यादे,
फिर ताजा हो गई।
वो देख हमे खुश हो गये,
और पूछने लगे कैसे हो।
बातों का सिलसिला चल पड़ा,
और वक्त का पता नहीं चला।
वो आज भी तन्हा अकेली है,
जिस तरह से मैं तन्हा हूँ।
तभी एक दूजे को देखते रहे,
और दर्द जिंदगी का सह गये।
जिंदगी की हकीकत सुनकर,
आंखों में आंसू भर गये।
दिल की लगी चोटों का,
दर्द एकदूजे से कहते रहे।
और पता ही नही चला की,
कब दिन और रात बीत गया।
और अब घड़ी बिछड़ने की,
धीरे धीरे आती गई।
पर जाते जाते दोनों अपनी,
मोहब्बत को अमर कर गये।
और मोहब्बत की खातिर ही,
दोनों गहरी नींद में सो गये।
दस्ता ये मोहब्बत को
इतिहास के पन्नो में
स्वर्ण अक्षरो से लिख गये।
और अपनी मोहब्बत को,
सदा के लिए जिंदा कर गये।