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Pranshu Kumar Pandey

Horror

4  

Pranshu Kumar Pandey

Horror

कैसी है ये महामारी

कैसी है ये महामारी

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कैसी है ये महामारी, कैसा है ये कोरोना,

जिसको भी देखो रोता-ही-रहता,

अंदर-ही-ही घुटता ही रहता,

रात-दिन सहमा- सा रहता।


कैसी है ये महामारी,कैसी है ये बीमारी,

जिसको भी देखो मदद को तड़पता,

अपनों से जुदा होता ही रहता,

हर पल गुमसुम सा रहता ।


कैसी है ये महामारी,कैसी है ये अनहोनी,

जिसको भी देखो लूटता ही रहता,

अपनों को धन से तोलता, 

प्रत्येक साँस की बोली लगाता।


कैसी है ये महामारी,कैसी है ये दुःख घड़ी,

जिसको भी देखो दूरी बनाता,

अपनों को बंदी बनाता,

हर पल पशुओं सा पेशता।

 

कैसी है महामारी,कैसी है ये परीक्षा की घड़ी,

जिसको भी देखो खाली ही रहता,

अपनों से मिलने को मन न मानता

हर पल चिंतित ही रहता ।


कैसी है ये महामारी, कैसा है विषाणु, 

जिसको भी देखो खासता ही रहता,

अपनों को संक्रमित करता जाता,

हर घर रोग से त्राहि करता,


कैसी है ये महामारी, कैसी है ये शून्यता,

जिसको भी देखो मोबाइल चलाता,

अपनों को ऑनलाइन हमदर्दी दिखाता,

सुबह-शाम ऑनलाइन ही रहता।


कैसी है ये महामारी, कैसी है ये गरीबी,

जिसको भी देखो रोटी को तरसता,

अपनों के आगे हाथ फैलता,

हर पहर भूख से मरता।


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