कविता
कविता
मेघ सघन मिलने को तरसे
सावन नभ से भूमि पर बरसे
मधुर-मधुर से संगीत सुनाये
प्रेम की थाली मुझको परसे
छाया बन राह में साथ चलो
फ़िर चाहे दुनिया ये झरसे
नदिया बहती धुन में अपनी
दिलकश कूल मिले न अरसे
तिमिर झुके कदमों में आके
कर दो न प्रेम की वर्षा कर से
प्रिय मीलों की दूरी बेशक है
ये क्षितिज मन भाव से बरसे।