जीवन मोहरे
जीवन मोहरे
ज्ञान-विज्ञान सब धरा रह जाता, नियति इम्तिहान जब लेती है
तेज-चतुराई की परीक्षा लेती, अपनें मोहरों को खूब दौड़ाती है।
विधि की लेखी कट सके न,धर्म-कर्म सारे कराती है
जैसी करनी-वैसी भरनी पड़ती, होकर होनी-अनहोनी रहती है।
कभी हँसाती कभी रुलाती, बना, कठपुतली हमे नचाती है
भूमिका निभा सब चलते, बनते, सीमा, उम्र की जब पूरी हो जाती है।