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Piyush Goel

Abstract

4  

Piyush Goel

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कैसी आज़ादी

कैसी आज़ादी

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क्या अर्थ करूँ मैं आज आज़ादी का

क्या मोल करूँ मैं भगत सिंह की फांसी का

जहाँ मातृ भाषा बोलने वाला होता शर्मसार है

मैं कैसे कह दूं की वहाँ आज़ादी का अधिकार है


जो भारत आज भी भ्रष्टाचार की जंजीरों में जकड़ा हुआ

काले धन के साँप ने जिसे कसकर पकड़ा हुआ

वो भारत क्या गुणगान करे अपनी आजादी का

जहाँ अपमान होता राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का


अपनी भाषा बोलने में जहां के लोग हिचकिचाते है

विदेशी भाषा बोलने वाले अपने ऊपर इतराते है

कोई अमल नहीं करता गांधी की बातों पर बस देते भाषण है

गुलाम तो अभी भी है देश बस अब काले गोरों का शासन है


अमीर की दौलत खा जाती गरीब के घर की इज़्ज़त को

सहन नहीं कर पाते बड़े लोग किसी गरीब की बरकत को

आज भी जहाँ पढ़ने वाले अनपढ़ों के गुलाम है

वो देश कैसे कह दे कि वो आज़ाद है


आज भी जहाँ नारी की मर्यादा पर प्रश्न चिह्न लगाया जाता है

ऊँचे कुल के जामिये को आज भी बड़ा बताया जाता है

जिस देश में आज भी जाति भेद का बोलबाला है

क्या वो देश क्रांतिकारियों के सपनों वाला है


शिक्षक भी मर्यादा भूले , भूले शिष्टाचार

आधुनिकता की दौड़ में दौड़े भूले सद व्यवहार

जहाँ राज नहीं , गुलामी करना सिखाते है

उस देश को कैसे आज़ाद बताते है


जहाँ अंधविश्वास का बंधा हुआ बंधन है

हर सड़क पर होता किसी अबला का क्रंदन है

ये कैसी आज़ादी है जहां इंसानियत को भूल गया इंसान

किसी का घर उजाड़ने के लिए रातों रात जारी हो जाता फरमान


चुप रहना ही सीखो, खामोशी का जमाना है

निर्दोषों को छोड़ो, दोषियों का जमाना है

शहीदों का अपमान होता आज़ादी के नाम पर

देश तो चलता रहेगा, भरोसा है भगवान पर


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