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Jiwan Sameer

Abstract Romance Tragedy

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Jiwan Sameer

Abstract Romance Tragedy

कैसे मैं प्यार करूँ

कैसे मैं प्यार करूँ

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तन में जब लगी हो आग

मन को कैसे शांत करूँ

बारात में सन्नाटे झूमे

मैं बिछोह की कैसे रपट लिखूं..! 


चुरा लूं तुम्हें चाँद समझ

रिश्ते वे कैसे निभाऊं

पत्तों के आंचल पर ओस बिंदु

बनकर थोड़ी देर विश्राम करूँ...! 


रात्रि से लड़ने लगे दिया 

चरित्र अपना मैं बना लूं

मौन होकर शब्द उलझते हैं 

दृढ़ संकल्प हैं अकेले मैं लड़ सकूं...! 


निगल नीर रहा उथल-पुथल 

सागर लहरें प्रेम विवश 

जल रही मरीचिकाएंं स्वयं 

नित ज्वारभाटा कीी प्रतीक्षा करूँ....! 


आवेग में है अमावस

अतीत जागा है बरबस

वासना के उद्वेग मेंं श्वास

होकर विस्मित मोक्ष का ध्यान धरूं...! 


तुम ही कहो-

कैसे मैं तुमसे प्यार करूँ

कैसे मैं तुम्हें स्वीकार करूँ....!!!! 



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