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काश! की तुम मिलने आती

काश! की तुम मिलने आती

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कोहरे की पहरेदारी थी

काश! की तुम मिलने आती,

सर्द रातों की दुश्वारी थी

काश की तुम समझ पाती,

भेज ही देती किसी तरह

यादों का गर्म बिछौना तुम,

प्रेम पाश के कम्बल को

ओढ़ा दी होती मुझपर तुम,

दिन चमकना भूल गया है

क्या इसकी भी साझेदारी थी,

काश की तुम मिलने आती 

फिर कोहरे की पहरेदारी थी,

इस बेरहम कड़कती सर्दियों से खुदा जहाँ को बचाए,


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