कासे कहूँ..!
कासे कहूँ..!
जब बहुत तेज चिल्लाने की इच्छा होती है
कल्पना लोक में शुतुरमुर्ग हो जाती हूँ
हाइकु लेखन पैशन होता जा रहा है
पहली भेंट–
प्रिया भाल से आये
कॉफी की गन्ध
दोनों से सजे
चापड़ा की दूकान–
पहली वर्षा
कबीर की बातें, '
भाँति-भाँति के लोग..'
आज के काल में चरितार्थ
एक दलाल से भेंट हो गयी..
अनन्त यात्रा के यात्री से
चिकित्सीय सुविधा दिलवाने के बदले
पैसों की मांग रखना, गिद्ध भी शर्माते होंगे
बेहद कटु लिखना चाहती हूँ पर
शब्दों पर भरोसा नहीं होता तो क्या करें।