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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-19

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-19

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कृपाचार्य दुर्योधन को बताते है कि हमारे पास दो विकल्प थे, या तो महाकाल से डरकर भाग जाते या उनसे लड़कर मृत्युवर के अधिकारी होते। कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा थे और उसके दु:साहसी प्रवृत्ति को बचपन से हीं जानते थे। अश्वत्थामा द्वारा पुरुषार्थ का मार्ग चुनना उसके दु:साहसी प्रवृत्ति के अनुकूल था, जो कि उसके सेनापतित्व को चरितार्थ ही करता था। प्रस्तुत है दीर्घ कविता दुर्योधन कब मिट पाया का उन्नीसवां भाग।


विकट विघ्न जब भी आता या तो संबल आ जाता है,

या जो सुप्त रहा मानव में ओज प्रबल हो आता है।  

भयाक्रांत संतप्त धूमिल होने लगते मानव के स्वर,

या थर्र थर्र थर्र कम्पित होते डग कुछ ऐसे होते नर ।  


विकट विघ्न अनुताप जला हो क्षुधाग्नि संताप फला हो,

अति दरिद्रता का जो मारा कितने हीं आवेग सहा हो ।  

जिसकी माता श्वेत रंग के आटे में भर देती पानी,

दूध समझकर जो पी जाता, कैसी करता था नादानी ।  


गुरु द्रोण का पुत्र वही जिसका जीवन बिता कुछ ऐसे,

दुर्दिन से भिड़कर रहना ही जीवन यापन लगता जैसे।

पिता द्रोण और द्रुपद मित्र के देख देखकर जीवन गाथा,  

अश्वत्थामा जान गया था कैसी कमती जीवन व्यथा।


यही जानकर सुदर्शन हर लेगा ये अपलक्षण रखता,

सक्षम न था तन उसका पर मन में तो आकर्षण रखता ।

गुरु द्रोण का पुत्र वोही क्या विघ्न बाधा से डर जाता,

दुर्योधन वो मित्र तुम्हारा क्या भय से फिर भर जाता ?


थोड़े रूककर कृपाचार्य फिर हौले दुर्योधन से बोले,

अश्वत्थामा के नयनों में दहक रहे अग्नि के शोले ।

घोर विघ्न को किंचित हीं पुरुषार्थ हेतु अवसर माने,  

अश्वत्थामा द्रोण पुत्र ले चला शरासन तत्तपर ताने।  


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