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Sakshi Yadav

Abstract Inspirational

4.8  

Sakshi Yadav

Abstract Inspirational

नारी की आज़ादी

नारी की आज़ादी

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वो तड़पती है, हाँ वो भी बिलखती है

वो रोती है हाँ वो भी रात भर न सोती है

केवल तुम ही नहीं जिसे ईश्वर ने दर्द दिया है

जाकर पूछो उसस, जिसे बाहर आने में भी घबराहट होती है

तुमने कोई न छोड़ा जिसे वो अपना कह सके


तुमने उसके लिए कोई भरोसा करने लायक नहीं छोड़ा

बड़े खुदगर्ज़ हो तुम वो भी जान गई

तुम उसे क्या दिलासा दोगे, तुमने तो अपनों को नहीं छोड़ा

एक वो जो बिना किसी शिकायत के हर राखी को बचाता है

और एक हो तुम जो हर राखी को तार-तार कर देते हो


अरे थोड़ी तो शर्म करो, वो अपनी बहन भी तुम्हारे भरोसे छोड़ गया है

पर नहीं, कोई अहसान खुद पर चढ़ने कहा देते हो

अब बस हो गया अब आवाज़ उठेगी 

अब मौन टूटेगा, अब अस्थियां बहेंगी

हाँ, अब शूरू होगी लड़ाई नारी की आज़ादी की 

अब कोई उठने वाली आँख देखने लायक न बचेगी


अब सांझ ढलने पर भी बेटी सकुशल वापस आएगी

अब कोई भी बेटी न बेबस न लाचार ही पाएगी

मौन थी वो जब तुम बोले

अब वो बोलेगी तुम मौन धरो

और सुनो दरिंदो इस नारी को

अब हिम्मत है तो आगे बढ़ो


आज ये वो द्रोपदी नहीं

जो घोर युद्ध कराएगी 

अब त्याग के कंगन, थाम शास्त्र 

ये स्वयं रणभूमि में आएगी

बनी आज ये दुर्गा है 


ये सारे रूप दिखाएगी

ये रानी लक्ष्मीबाई है

ये मौत का तांडव मचायेगी

ये आज नहीं अब बेबस है

ये अपनी ताकत दिखलाएगी

हर एक सखी जो पड़ी अकेली


ये उसका कर्ज़ चुकायेगी

हर रूप में ढलेगी अब नारी

अब नारी भी हठ पर आएगी

करेगी नाश हर अधर्मी का

जब ज़िद उनकी हठ कर जायेगी


ये हर रिश्ते को निभाएगी

ये करवाचौथ मनाएगी

ये हर वर्ष कलाई सजाएगी

ये माँ बन प्यार लुटाएगी

ये वही नारी है जो पहले थी


बन राधा प्रेम परिभाषा सिखाएगी

और नए रूप में, नए तेज़ से 

का साक्षात्कार बन जाएगी

और ये नारी हाँ यही नारी,

बुराई का संहार भी कर जाएगी।


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