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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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स्वतंत्र भारत

स्वतंत्र भारत

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कितना अच्छा लगता है

कि हम स्वतंत्र भारत के

स्वतंत्र नागरिक हैं पर

सच कहें तो हम अभी 

मन से स्वतंत्र नहीं हैं,

सच्चाई कड़ुवी है मगर

स्वतंत्रता का हमें भान तक नहीं है।


कहने को तो भारत स्वतंत्र है

परंतु हमारी बहन बेटियों में

फिर डर आखिर क्यों है ?

जात पात, धर्म मजहब के नाम पर

आये दिन विवाद क्यों है ?


भ्रष्टाचार का राक्षस नृत्य कर रहा है

आरक्षण के नाम पर

बड़ा षड्यंत्र हो रहा है।

शिक्षा का खुला मजाक उड़ रहा है

योग्य है तो क्या हुआ

सवर्ण हैं इसलिए धक्के खा रहा है।


देश के दुश्मनों पर भी नजर डालिए

पैदा यहां हुए, सुख सुविधा पा रहे

पर देश के दुश्मनों के

खुलकर गीत गा रहे हैं,

बड़ी बेशर्मी से दुश्मनों की शान में

जब तब कसीदे पढ़ रहे हैं।


क्या कहें हम देश क

े ऐसे गद्दारों को

जो देश के खिलाफ आये दिन

बेसुरा राग गा रहे हैं,

देश रहे या जाये भाड़ में

वो तो बड़ी बेहयाई से

अपनी जात औकात दिखा रहे हैं।

सुख सुविधा के लिए तो

वो भी देश के आम नागरिक हैं,

वैसे उन्हें देश में बड़ा डर लग रहा है।


राजनीति में भी जरा झाँकिए हुजूर

खुल्लमखुल्ला माखौल उड़ रहा है,

मैट्रिक, हाईस्कूल, इंटर पास

बेलगाम नेताओं को देखिये

आईएएस, पीसीएस को भी

ऊँगलियों पर नचा रहा है।


कैसे कह दूँ कि 

मेरा भारत स्वतंत्र हो गया है ?

विडंबनाओं में तो जरूर 

भारत स्वतंत्र हो गया है।

अंग्रेजों की दास्तां से हमें


आजादी तो मिल गई लेकिन

मानसिक आजादी अभी

बहुत दूर ही दिख रही है,

भारत तो स्वतंत्र हो गया मगर

स्वतंत्र भारत अभी भी

दूर की कौड़ी सी ही लग रही है।


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