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Gopal Agrawal

Abstract

3.4  

Gopal Agrawal

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मित्रता की फसल

मित्रता की फसल

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एक दोस्त मिलता है,

तब होती है जिन्दगी की शुरूआत,

लगने लगता है कि,

कोई तो है जिसके साथ,

बहुत लम्बी बाते करते हुए,

समय बिताएगें,

कुछ उसकी सुनेगें तो,

कुछ अपनी बताएगें,

स्कूल में पढते हुए,

खेलते कूदते हुए,

लड़ते झगड़ते हुए,

दोस्ती कब पक्कम पक्की,

हो जाती है,

पता ही नहीं चलता,

जब समझने लगते है,

तब अहसास होता है कि,

दोस्तों के बिना तो,

जि

न्दगी अधूरी है,

जब मन में ऐसा भाव,

आने लगे तो समझना,

जीवन में अच्छे,

मित्रता की फसल ,

लहलहाने लगी है,

हां जैसे फसलों में,

कुछ दागदार स्वार्थी,

साथी भी उग आते है,

खरपतवार की तरह,

वे दोस्ती में दगा देते है,

लेकिन समय की मार से,

अपने आप नष्ट हो जाते है,

अपने दोस्ती के अनमोल,

साथियों को,

ईमानदारी का खाद पानी,

देकर संभाले,

दोस्ती का फर्ज निभाएं।




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