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Mamta Singh Devaa

Tragedy

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Mamta Singh Devaa

Tragedy

कारीगरी

कारीगरी

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तुम सबके लिए रोज़ करना है

मुझे कौन पूछता है

मुझे तो बिना मरे ही मरना है

मुझे कौन पूछता है 

दिन भर चरफर हो कर घर में घुमती हूँ

कोई ज़रा देर तक सोया रहे तो घबराकर पूछती हूँ" ठीक तो हो ? " 

लेकिन जब निढ़ाल पड़ी हूँ मैंतब आर्डर तो आ जाता है

पर कोई नही समझता कीइस हाल में भी कैसे खड़ी हूँ मैं 

कहते हैं सब किस्मत का भोग है

अगर ऐसा है तो गृहस्थ से अच्छा जोग है 

जिस जीवन को प्रेम से माँगा था

बड़े प्यार से बुना एक एक धागा था

उसमें पता नही कहाँ से कीड़ा लग गया

सुख चैन मेरा धीरे - धीरे निगल गया 

लेकिन बड़ा बूता है मेरा

विपरीत परिस्थितियों ने मुझे है घेरा

उसके बावजूद उधड़े हुये जीवन को इस तरह पकड़ कर खड़ी हूँ मैं 

मज़ाल जो किसी को उधड़ा एक भी फंदा दिख जाये

अपनी कारीगरी की बारीकियों सेसिलने में लगी हूँ मैं ।


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