कागज़ की नाव
कागज़ की नाव
बड़ी लम्बी, गहरी नदी है
पार जाना है...
तुम्हें भी, मुझे भी।
नाव तुम्हारे पास भी नहीं,
नाव मेरे पास भी नहीं
जिम्मेदारियों का
सामान बहुत है।
बंधू, बनाते हैं
एक कागज़ की नाव
अपने-अपने नाम को
उसमें डालते हैं।
देखें, कहाँ तक लहरें
ले जाती हैं
कहाँ डगमगाती है
कागज़ की नाव।
और कहाँ जा कर
डूबती है !
निराशा कहाँ है ?
किस बात में है ?
कागज़ की नाव को तो
डूबना ही है।
पर जब तक न डूबे
देखते-देखते
वक़्त तो गुज़र जायेगा
और जब डूबे
तो दो नाम एक साथ होंगे।