कागज़ों के मकाँ को जलाते नहीं
कागज़ों के मकाँ को जलाते नहीं
दिल में हमको कभी भी बसाते नहीं
दिल वो हमसे कभी भी लगाते नहीं।
घर वो अपने कभी भी बुलाते नहीं
देख हमको कभी मुस्कुराते नहीं।
होश मेरा हमेशा उड़ाते रहे
सामने देख नज़रें झुकाते नहीं।
ज़ख्म पाये बहुत ज़िन्दगी से हमी
दर्द अपना किसी से बताते नहीं।
भूल बैठे हैं वादा किया था कभी
वो भी वादा किसी से निभाते नहीं।
आशियाँ सब बनाये हैं कागज़ पे ही
कागज़ों के मकाँ को जलाते नहीं।
बेवफ़ा को कभी भूल पाये न हम
दिल में चाहत कभी भी जगाते नहीं।