जवाँमर्दी
जवाँमर्दी
पिछले दिनों जब मैं गयी थी मुंबई,
मौसम हुआ आशिकाना,
झूम के चली हवा,
जोर से बरसा पानी।
ऊपर फ्लैट से मैंने नीचे देखा,
बच्चे और बड़े पानी में भीग रहे थे,
मैं भी झट नीचे गयी,
कई हाथों ने मुझे पकड़ लिया।
किसी ने कहा, दादी गर फिसल गयी,
तो मच जाएगा यहाँ कोहराम,
किसी दूसरे ने कहा,
दादी ज्यादा भीग गयी।
तो हो जाएगा सर्दी और जुखाम,
मैंने कहा, न-न ऐसा कुछ भी न होगा,
मुझे भीगना अच्छा लगता है,
जवानी में मैं खूब भीगती थी।
इक प्यारी-सी बच्ची बोली,
दादी तुम्हारी जवाँमर्दी को सलाम,
तभी पीछे से किसी कमबख्त ने कहा,
हाय-हाय बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम।