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Anju Motwani

Abstract Comedy Drama

2.4  

Anju Motwani

Abstract Comedy Drama

ज़ूम

ज़ूम

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आदत हो गयी है

मेरी उँगलियों को

मोबाइल पर दिन भर

थिरकने की।


अँगूठे और तर्जनी को

मिलकर कुछ खोजने की

चीज़ों को बारीकी से

परखने की।


आदत भी ऐसी कि

अब तो अखबार हो या

हाथ में कोई पुस्तक

लगता है ज़ूम कर लो।


सोचो, कभी तुम्हें ही

ज़ूम कर लिया तो

तुम्हारी हर कमी

तुम्हारे दिल में

क्या-क्या है,


सब एकदम स्पष्ट

हो जायेगा

बिल्कुल क्लियर।


तुम्हारे चेहरे के

आते-जाते भाव

तुम्हारी आँखों में

मेरी तस्वीर है कि नहीं,


तुम्हारी आँखों को

ज़ूम करके

देखना चाहूँगी कि

उनमें गुस्सा है कि प्यार।


माथे की शिकन

कितनी गहरी है

होंठ कुछ कहने की

कोशिश में हैं कि,


चाह कर भी

सावधान की मुद्रा में हैं

हाँ, यह भी

हो सकता है कि

जो मुझे महसूस

न होता हो,


वो छुपा हुआ प्यार भी

परत दर परत

नज़र आ जाये।


चलो, जीवन के

खट्टे मीठे लम्हों को

ज़ूम कर लें।


तुम मुझे ज़ूम कर लो

मैं तुम्हें ज़ूम कर लूँ।।


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