journey of my life
journey of my life
छोटी थी प्यारी थी,
मम्मी पापा की मैं राजदुलारी थी।
पर बीमारियों ने मैं मारी थी,
आई मौत से लड़ने की बारी थी।
घर वालों ने ना हिम्मत हारी थी,
पड़ी उन पर भी मुसीबत भारी थी।
जब आई पैसों की कमी आ रही थी,
जब आई स्कूल में जिंदगी में आया एक बदलाव।
टैलेंट की मुझ में भरमार थी,
मेरे दोस्तों में मची रहती हाहाकार थी।
पर मैं पीछे ना हटने को तैयार थी,
कुछ टीचर भी ईर्ष्या करते हर बार थे ,
कभी न बढ़ाते हौसला मेरे यार थे।
पर अब जीत लिए काफ़ी सर्टिफिकेट,
मेडल भी मिले बहुत बार थे।
ठानी थी लगानी हैं राइटर्स के साथ दौड़,
आखिर में पा ही लिए मैंने अवॉर्ड।
नैशनल, इंटरनेशनल एंथोलोजी और मैग्जीन ,
में कविता छपी इस बार।
इश्तिहारों में भी छाई ,
ओपन माईक में जज के तौर पर जाती है बुलाई,
किसी से अब जाती नहीं गुनीत भुलाई ।
खुद को साबित करने का मौका मिला इस बार,
गुनीत का नाम गुंजा फिर से एक बार,
जिस को सब समझते थे बेकार।
चुप करा दिया सबको प्रयोग करके अपने अल्फाजों का वार,
इसलिए कहते हैं खुद पर मत करो इतना अहंकार।
कमा लिया हैं इतना नाम,
कम्युनिटी के आते मैसेज सुबह शाम।
आज बन गई अपने मां बाप की नजरों में स्टार,
दोस्त बुलाते हैं कहकर लेखक यार।
कमा लिया हैं इतना नाम,
गुनीत को जाना नहीं पड़ता ढूंढने काम।
लोग आते हैं बुलाने,
अपनी कम्युनिटी के लिए जज बनाने।
