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Guneet Malik

Others

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बलात्कार

बलात्कार

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कोई भी माता पिता अपनी बेटी रात को भेजता नहीं बाहर,

कहीं कोई हैवान उसे बना ना ले अपनी हवस का शिकार।

कहते सब बार बार पहनो कपड़े पूरे,

पीछे पड़ेंगे शैतान अगर पहने अधूरे।

एक नहीं, दो नहीं, चार चार दरिंदे करते लड़की से बलात्कार,

करके निर्वस्त्र छोड़ देते जंगल के पार।

मन नहीं भरता एक बार,

नोचते लड़की के शरीर को ना जानें कितनी बार ।

हैवानियत से भरता ना मन,

करते सरिए से वार,

मासूम के जीने के खत्म कर देते आसार।

कभी कभी तो लगा देते आग,

ताकि मिल ना पाए पुलिस को कोई सुराग।

ये बलात्कार का डर मां बाप को सताता रहता हर बार,

कहीं डोली विदा करने से पहले अर्थी में कंधा ना देने पड़े चार।

अब इस डर को भगाना है,

दरिंदों को मार गिराना है।

बेटी को, बहु को, बहन को सबको लड़ना सिखाना है,

इस हिंदुस्तान को बलात्कार मुक्त बनाना है।

गली गली में पल रहे दरिंदों को श्मशान में पहुंचाना है,

हिंदुस्तान की इज्जत, को घर की शान

को उसका हक दिलाना है।

उनको पढ़ने लिखने के लिए,

कुछ बनने के लिए बाहर बिना बलात्कार के डर से घुमाना है।


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