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V. Aaradhyaa

Tragedy

4.5  

V. Aaradhyaa

Tragedy

जो अब तक है अनकहा

जो अब तक है अनकहा

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यूँ कर रहा था कोई व्यग्र मुझे

पत्र पर अवतरित होने काे 

दौड़ पड़े तब मन के घोड़े

जा पहुँचे अंतस स्थित पुस्तकालय.


निकाल ली वह अभ्यास पुस्तिका

झाड़ कर जीवन चर्या की धूल

पलटने लगा खोलकर पन्ने

और ढूँढ़ने लगा कोई कोरा पृष्ठ.


पर,भरे पड़े थे सारे के सारे

तुम्हारी ही स्मृतियों के

सुन्दर शब्द पुष्पों से

कुछ पृष्ठ काले भी थे धब्बों से भरे हुए.


सोचा, उन्हें फाड़ कर फेंक दूंँ

पर ठीक उनके पीछे ही तो 

पड़ी थी कोई न कोई मधुर स्मृति,

मैंने झट वह पुस्तिका बंद कर दी।


अब ढूँढ़ते हैं एक नयी अभ्यास पुस्तिका

जिसके सारे पन्ने कोरे के कोरे ही हों

और मैं लिख सकूँ वह सब

जो अब तक है अनकहा !


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