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Shakuntla Agarwal

Inspirational

4.8  

Shakuntla Agarwal

Inspirational

"जन - जन के श्री राम"

"जन - जन के श्री राम"

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कण - कण में श्री राम,

कण - कण में हैं राम,

घट - घट में हैं राम,

जन - जन में राम समाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

तन के मैल को खूब मला तूने,

मन का मैल न धो पाया,

कण - कण में हैं राम समाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

जन - जन के श्री राम,

हर मन में श्री राम,

भवसागर पार करवाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

शबरी ने बरसों राह तकी,

चख - चख के डलिया भर लेनी,

खायेंगे मेरे राम प्रभु,

चख - चख बेर खिलाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

जन - जन के श्री राम,

हर मन में श्री राम,

शबरी को पार लगाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

आये जब गँगा के तीरे,

नीर देख मन घबराया,

केवट ने धीर बँ

धाया,

पल - भर में नाँव ले आया,

श्री राम को गँगा पार करवाया,

जन - जन के श्री राम,

हर मन में श्री राम,

केवट को भवसागर पार करवाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

अहिल्या शाप से जकड़ी हुई थी,

पत्थर बन वर्षों पड़ी थी,

चरणों से छूकर श्री राम ने,

पत्थर से नार बनाया,

जन - जन के श्री राम,

हर मन में श्री राम,

अहिल्या को शाप मुक्त करवाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

सनकादि मुनि के शाप से,

जय - विजय पृथ्वी पर आये,

रावण और कुम्भकरण कहलवाये,

अपने हाथों मार राम ने,

भवसागर पार करवाया,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया,

जन - जन के श्री राम,

"शकुन" के मन में श्री राम,

बंदे फिर क्यों हैं भरमाया ||


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