STORYMIRROR

Gulshan Sahu

Inspirational Others

3  

Gulshan Sahu

Inspirational Others

ज़मीन से जुडा रहना पडेगा

ज़मीन से जुडा रहना पडेगा

3 mins
27.1K


मैं वो सुलगती आग हूँ,

आवाम की रगों मे जो बहता है,

मैं वो कलकल बहता पानी हूँ,

पत्थरों से टकरा कर जो कहता है।


के चल-अचल निश्चित कहाँ,

के पापी अब भयभीत कहाँ,

के संग्राम मे अब कायरता है,

कोयल की आज़ादी का गीत कहाँ।


चली गई आत्मीयता लोगों की,

चला गया वो ज़माना कहाँ,

सुलगा करते थे जिगर मे जो शोले,

इस हंगामे मे वो फ़साना कहाँ।


कहाँ मिलेगी वो देशभक्ति पुरानी,

जो सीना चीरकर आज़ादी मांगती थी,

रक्त रंजीत थे काँटों से पैर मगर,

दिन ब दिन जो सीमा लांघती थी।


मैं नहीं कहता तू कोई भगत है,

ना मुझे पटेल सी आग चाहिए,

पकड़ मशाल चल मंज़िल की ओर,

मुझे उस गरीब की रोटी मे साग चाहिए।


मुझे वो सती की वीरता चाहिए,

जिसका दामन पकड़े शोले भभकते थे,

मुझे सावरकर का वो चरित्र चाहिए,

कारागार के भीतर जिनके आँख चमकते थे।


अब जब जरूरत अपनी चोटी पर है,

तो दांडी तुझे भी चलना पड़ेगा,

उठकर गिरे तो गिर कर उठेंगे,

ये वक्त तुझे बदलना पड़ेगा।


उड़कर आज़ादी मांगना फिज़ुल है,

जुड़े रहना पड़ेगा, जमीन से जुड़े रहना पड़ेगा।


मैं उस आँचल की गर्मी हूँ,

ममता मे जिसके आक्रोशी पलते हैं,

मैं उस लहु की नर्मी हूँ,

रणभूमि की शाम जिसमे ढलते हैं।


हँसकर मरने वाले वो लोग कहाँ,

भक्ति जपने वाले वो जोग कहाँ,

लहु अब पानी सा बहता है,

पर लोगों मे देशभक्ति का वो रोग कहाँ।


कहाँ गए वो बंदी परिंदे,

आँखों मे जिनके आकाश था,

बीते पल के वो नेता कहाँ,

हर कदम मे जिनके विकास था।


कहाँ गई वो दिए की रोशनी,

अंधेरों में जिसकी ओर बढ़ते थे,

बीते पल के वो संग्रामी कहाँ,

जान देकर जो देश के लिए लड़ते थे।


नहीं चाहिए मुझे गांधी-नेहरू,

तुझमे उनका जीवन झलकता है,

अब जो दौड़ गया तो रूकना नहीं,

के तेरी छाती मे मेरा दिल धड़कता है।


क्रांति की जो लहर चली है,

हर पापी इसमे सड़ेगा,

उठकर गिरे तो गिर कर उठेंगे,

ये वक्त तुझे बदलना पड़ेगा।


उड़कर आज़ादी मांगना फिज़ुल है,

अब तुझे हिम्मत से अड़े रहना पड़ेगा,

जुड़े रहना पड़ेगा, ज़मीन से जुड़े रहना पड़ेगा।


मैं उन लम्हों का ठिकाना हूँ,

जो इतिहास के पन्नों में जगह पाते हैं,

मैं उन परिंदों का फ़साना हूँ,

जो दुसरों की तमन्ना मे जगह पाते हैं।


अब उस तमन्ना में वो बात कहाँ,

और कहाँ है उसकी खिलखिलाहट,

कर गुज़रने की वो चाह कहाँ,

आज़ादी पर जाती वो राह कहाँ।


कहाँ है वो शहादत की ओर बढ़ते कदम,

और बढ़ती हुई वो मुद्दते कहाँ,

गरीबों पर वो मेहरबानी कहाँ,

देश पर लुटने के लिए वो जवानी कहाँ।


ना आज़ाद की लीला चाहिए,

और ना अच्छे दिनों का विश्वास,

दिखा दो केवल आशा की चिंगारी,

रगों मे बहता इंकलाब का प्यास।


दौड़कर हाथ थाम ले मेरा,

के मेरी मंज़िल वो शाम है,

पहुँच जहाँ थमेंगी साँसें ,

जहाँ वतनपरस्त को आराम है।


तू चल क्रांति की उस लहर मे,

गंगा का जल जो पाप पर पड़ेगा,

उठकर गिरे तो गिरकर उठेंगे,

ये वक्त तुझे बदलना पड़ेगा।


उड़कर आज़ादी मांगना फ़िजूल है,

बस हिम्मत से अड़े रहना पड़ेगा,

जुड़े रहना पड़ेगा, ज़मीन से जुड़े रहना पड़ेगा।


इतनी मेरी बातें और मेरे इतने रूप,

पहचान सका जो मुझको ठंड मे जैसे धूप।

इतनी मेरी साखें और मेरे इतने प्रकार,

पहचान सका जो मुझको तो बदले तेरे विचार।

इतनी मेरी मुरादें और मेरे इतने साथी,

पहचान सका जो मुझको तो मिल जाए आज़ादी।

…तो मिल जाए आज़ादी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational