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Gulshan Sahu

Drama

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Gulshan Sahu

Drama

भगत से साक्षात्कार

भगत से साक्षात्कार

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कल पूछा भगत से उसने,

क्या जान की परवाह नहीं ?

क्यों खून मांगता मन है तेरा ?

क्या तुझको भी जीना नहीं ?


क्यों जिस्म फड़फड़ाता है तेरा ?

स्वतंत्रता की सोच पे,

गर पढाई छोड़ दी तो,

सोयेगा भूखा सोच ले.


कर हाथ पीले अपने अब,

भारत नहीं तू घर बसा,

नारी से पागलपन थमेगा,

पीढ़ी चलेगी घर चलेगा,

नारी का अब अनुदान ले,

भारत नहीं तू घर बसा.


चिढ भगत फिर बोले उसको,

जीवन तेरा धिक्कार है,

नारी नहीं मैं मांगता,

मेरा देश ही मेरा प्यार है.


मेरी रूह भारत के लिए,

जिस्म भारत को समर्पित,

जान की परवाह कहाँ,


जब जिगर में अंगार है.

तू भी तू है,

मैं भी मैं हूँ,

तू खुदा जो तू सही है,

और मैं गलत तो मैं नहीं हूँ ?


मेरी जवानी देश की,

और देश की ये पुकार है,

तू है सरकारी अगर तो,

तुझपे भी धिक्कार है.


न देख सकू ये गद्दारी मैं,

आँखों में तेरी खोट है,

सड़ी इसकी पंचायत तो,

खाप तेरी सोच है.


जेल में सड़ते भगत को,

मौत का इंतजार है,

फिर पुछा भगत से उसने,

घिसी हुयी क्यों धार है ?


फीकी तेरी लालिमा पड़ी,

गल चुकी तेरी जान है,

तू मुकद्दर का विरोधी,

संकट में तेरे प्राण है.


क्यों मन में तेरे आज भी,

संग्राम का है रस भरा ?

मांग माफ़ी कम सजा हो,

जीवन अभी आधा पड़ा.


चिढ भगत फिर बोले उसको,

इक ही मेरा जवाब है,

आज़ादी मेरा ख्वाब है,

और खून इंकलाब है.


इक ही मुकद्दर है मेरा,

मौत भी मेरी यार है,

पानी भी अब न मांगू मैं,

मेरा देश ही मेरा प्यार है...!


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