STORYMIRROR

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

3  

अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

जलने दे अरमान मेरे

जलने दे अरमान मेरे

1 min
190

जिंदगी को क्या मालूम नहीं,

जो भरोसे पर उम्र तक ठहरे,

सांसों से दिल्लगी ठीक नहीं,

जो कब छोड़े दे मालूम नहीं।

बस यूं ही जिंदगी का सफर,

कटता रहा होकर बेखबर।

टूट गये वो सपने सारे,

खड़े किये जिनके सहारे।

लो अब और नहीं कहूंगा,

जिंदगी को दर्द नहीं दूंगा,

जलने दे अरमान मेरे,

राख सीने में दबा दूंगा।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy