जल ही जीवन है
जल ही जीवन है
आओ मिलकर पेड़ लगाएं,
धरती को हम स्वर्ग बनाएं।
जल के क्षीण दशा में सबको,
ग्लोबल वार्मिंग हम समझाएं।
नहीं कहीं बरसात अगर हो,
सदा अन्न भंडार घटेगा।
सूखा ही सूखा का आगम,
मरु स्थल का ताज दिखेगा।
पर्यावरण सदा ही दूषित,
प्रलय जताता सागर होगा।
नदी, बावली, कुएं सूखते,
बस हाहाकार मचा होगा।
बसंत कभी ऋतुराज न होगा,
ऋतुओं का एहसास न होगा।
मलिन -मलिन से फूल खिलेंगे,
रोग ग्रसित हर मानव होगा।
मृग- मरीचिका तृप्ति सदा ही,
जीव सभी तो प्यासे होंगे।
नहीं पता फिर दुनिया की दर
जाने क्या से क्या -क्या होगा।
