जिसकी लाठी
जिसकी लाठी
मिट्टी पे लिखी कविताओं के कोनों में
बनी होती हैं कांटों की बाड़ें,
बीच में उनके उगती है फसल।
जिनमें गाजर भी होती है तो होती है नीम भी।
कुछ कविताएं लिखी जाती हैं,
नमक से भरी रेत पे,
जो जलाती हैं ज़ख्मों को।
उनपे चलते पैर छांव को तलाशते हैं।
रेत को मील का पत्थर नहीं बनना होता,
उनके दानों का काम होता है
सीपों को संभालना भी।
लेकिन कौन लिखता है अब,
रेत पे या मिट्टी पे?
अब शक्कर का युग है।
युग है,
जिसकी लाठी
कविता मीठी।