जिंदगी
जिंदगी
उड़ते जाये नभ में पंछी, लेकर छवि निराली,
असीमित प्रकृति का, जगत में कौन है माली,
सदियों से इंसान धरा पर, आता जाता रहा है,
जिंदगी क्या है इंसान की, पूछ रहा है मवाली।
जिंदगी क्या है जहां में, आग का दरिया मान,
चार दिनों की चांदनी, फिर हो अंधेरी सी रात,
भागदौड़, धन लोलुप बन, चले नहीं कुछ साथ,
आया था नंगा बिल्कुल, जाना हो खाली हाथ।
रंगमंच पर रंगकर्मी से पूछा, जिंदगी क्या होती,
कहा रंगकर्मी जिंदगी बेवफा, पात्र सम ही होती,
हिम्मत मेहनत, दीन ईमान से मिलते सच्चे मोती,
आए है सो जाना होगा, जिंदगी ना कोई बपौती।
सुख के साये में जी रहा, राजा का वो राजकुमार,
धन दौलत की कमी नहीं, जमकर मिलता प्यार,
पूछा जिंदगी क्या है, खुशियों से भरा हुआ संसार,
खुशियां बांटों जमकर रोज, जीवन का है आधार।
जिंदगी क्या है, नाटक के इक पात्र समान मान,
चंद मिनटों के दर्शन होते, फिर हो जाता छुमंतर,
कभी हंसे कभी रोता है, मंच को करता है रोशन,
हालत होती बुरी कभी, जब पढ़ता है कोई मंत्र।
जिंदगी जीने का नाम कहे, जी लो चंद घडिय़ां,
चार दिनों का साथ मिला, टूट जाएं फिर लडिय़ां,
जिंदगी होती बहुत बड़ी, जब पापों की लगे झड़ी,
जीने की एक कला हो, जैसे कोई जादू की छड़ी।
जिंदगी बहुत शानदार है, धर्म कर्म करते हजार,
खुशी खुशी जी लेते, मिलके बाटों जन में प्यार,
एक दिन फिर वो आएगा, जाना हो परलोक पार,
सच्चाई के बल पर जीते, कभी नहीं जीवन हार।
जिंदगी क्या है, कवि कह रहा, पाया नहीं है भेद,
कितनी ही चर्चाएं चलती, मान रहे जन मतभेद,
जिंदगी एक सुहाना सफर है, पता नहीं क्या कल,
हर समस्या समाधान है, हर कठिनाई होती हल।