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Dinesh paliwal

Abstract

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Dinesh paliwal

Abstract

।।जिंदगी की पहेली।।

।।जिंदगी की पहेली।।

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अब तक समझा नही ए ज़िन्दगी,

तुझे बस काटना है या जीना है

ये जो धागे हैं उलझनों के हर कदम,

इन में उलझ कर बस छटपटाऊँ,

या ताना बाना जीवन का ,

मुझे इन से ही बस सीना है।

लड़ूं इन से,या करूं शिकायत,

रार पालूं या फिर चाहूँ हिमायत,

मेरे हिस्से में सिर्फ पत्थर है

या चुन के रखा तूने कोई नगीना है

अब तो बता ए जिंदगी,

तुझे बस काटना हैं या फिर जीना है।।


कर्म का अधिकार दिया मुझे बस

फल तो माधव को ही देना है,

पर इक्षित फल भी कभी मिलेगा,

या इस जन्म में बस पिछले जन्म,

के हर कर्म का फल ढोना है,

कर दे कभी तो इशारा ए जिंदगी,

मेरे मन के माफ़िक भी क्या,

इस जीवन में कभी कुछ होना है।

अब तो बता ए जिंदगी,

तुझे बस काटना है या फिर जीना है।।


मुझे साहिल का है पता भी,

और कश्ती भी है साथ मेरे,

पर जीवन के इस भंवर में,

रहे बस तूफानों के है डेरे,

कोशिश भी बहुत की हैं,

और धोखे भी बहुत खाये,

दानिश भी बहुत देखे,

रहबर भी बहुत आये,

लेकर सहारा मेरा ही वो ,

खुद जीवन में बढ़ गए हैं,

पर पांव मेरे जैसे इस,

दलदल में गढ़ गए हैं,

क्या मेरी ज़िंदगी में भी,

तूने रखा कोई शकीना है,

अब तो बता ए जिंदगी,

तुझे बस काटना हैं या फिर जीना है।।



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