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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

जिंदगी की आपाधापी

जिंदगी की आपाधापी

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जिंदगी की आपाधापी में

हम खुद को भूल गये हैं

दूसरों की रसाकस्सी में

हम खुद से रूठ गये हैं

हम दूसरों को गिराने में,

हम खुद ही गिर गये हैं

दुसरो को पत्थर मारने में

खुद लहूलुहान हो गये हैं

जिंदगी की आपाधापी में,

हम ख़ुद से ही हार गये हैं

जिंदगी की इस दौड़ में,

हम जीतकर हार गये हैं

हम अपनों की मदद में,

खुद बेसहारा हो गये हैं

उम्र-रेत फिसली हाथ से,

हम हाथ मलते रह गये हैं

जिंदगी की आपाधापी में,

खुद से ही महरूम हो गये हैं

ये अनुभव किया साखी ने,

जब तक जिस्म में जान है

कर ले खुद की पहचान है

उम्र ढली,बुढापा आया

फिर कुछ न हाथ आया

जिंदगी समझते-समझते,

हम श्मशानवासी हो गये हैं

खुद को भीतर समझने से,

हम खुदा के प्यारे हो गये हैं।


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