जिंदगी कि दौड़ में हार गया हूँ
जिंदगी कि दौड़ में हार गया हूँ


बस, अब जिंदगी की दौड़ में
हार गया हूं मैं,
समझ नहीं आता
कि क्या करूं।
यूं ही
तन्हा अकेले,
अब तो जवानी भी
साथ छोड़ रही है।
ढल रही है धीरे-धीरे उम्र
और मानसिक संतुलन भी
बिगड़ रहा है क्या करूं।
बस अब और
नहीं होगा
बर्दाश्त नहीं होता।
ए जिंदगी
तुझ पर
मैं सब कुछ वार
गया हूं।
बस, अब जिंदगी की
दौड़ में
हार गया हूँ !