ज़िंदगी का नमक
ज़िंदगी का नमक
ज़िंदगी का नमक
खारा भी, कुछ मीठा भी।
बांधे कितने ही महल दोमहले
सोने के दर दरवाज़े, चांदी के जंगले
राहों में मखमल बिछता
छत पर रेशम का चंदोवा तनता
गाड़ी बंगले की क्या बात कहें
सूट बूट के ठाठ रहे
नोटों की बरसात रही
कानों में "और, और " की गुहार रही !
बौराया मन
डूबा अब नोटों की बौछारों में
खुशहाली के सपने पलते
आंखों के गलियारों में
जिंदगी का नमक
बेरंगा भी, सतरंगा भी !
पैसे की हरियाली से अनजाना
आवारा बचपन
सोच रहा हैरां - हैरां
कचरे का भी होता है
फ़िर, मेरा कोई घर क्यों ना होता !
ज़िंदगी का नमक
कुछ खारा भी, कुछ तीता भी।