जिंदगी एक लताएं
जिंदगी एक लताएं
मेरी जिंदगी एक लताएं है।
हरे डंठल पर रवि के प्रकाश तपाए है।
वन वन भटकी डगर डगर ये ठन बनकर।
सही राह नहीं पाई शूलो पर गुजर कर।
आकांक्षा मन में उठने लगा।
आत्म- विसर्जन करने लगा।
खंड से खंडित हुए उलझ उलझ कर,
इनमें बहुत विपदाएं है।
मेरी जिंदगी एक लताएं है।
विचित्र कहानी यह है मेरी।
कैसे ! करूं सफ़र और हो रवानी।
उम्र मेरी कैसे गुज़रे, कठिनाइयों के पथ पर चलकर।
क्या ? अब मंजिल नहीं मिलेगी पेड़ों पर रगड़कर कर।
कोई हमें तो बतलाओ, क्यों नहीं मिला थोड़ा सा पानी।
क्यों बन गई अजब सी कहानी।
कैसे सिचिंत करूं मन रूपी जड़ को, इनमें बहुत से कालिकाएं है।
मेरी जिंदगी एक............................।
जला देते हैं श्रम करके दावानल ज्वाला में।
मिलता नहीं हमें कुछ उस भंवर में फंसकर।
में गुमराह रहता हूं जीवन भर।
चित्त में दबा कर रखता हूं नहीं कह कर।
तोड़ देता है समय हमें गिर जाता हूं मुरझाकर।
तब नहीं पनपता जीवन में, अमृत के जल डालकर।
क्या होगा अब तो समय चला गया, अब फिर क्यों लौट कर आए हैं।
मेरी जिंदगी एक................।
