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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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जीवंतता

जीवंतता

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जीवंत हैं हम

इसलिये हर गुजरते हुये पल में

जीवंतता को देख लेते हैं

उसके सहचर बन जाते हैं।

ये न विचारों का बोझ है

न यादों का मेला है

न अतीत है

न भविष्य है।

एक पुल सा है

अतीत से भविष्य के बीच

अप्रसांगिक होता हुआ

बस जीवंतता को स्वीकार करता हुआ।

ये एक तरह से

पुनर्जन्म है।

जीवंत हैं हम और

अगर निष्क्रिय दिखें

तो यह भ्रम ही होगा

क्योंकि जीवंतता

चैतन्य होती है

आम तौर पर गुजरते हुये पल का

न देखा जा सका आयाम जब

दृश्यमान होता है,

तो यह रहस्यमय सा लगता है।

पर हम सरल है

अपनी जीवंतता में भी।


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