जीवन
जीवन
बहते जा रहे हैं ..
एक सुराख़ सा कश्ती में हुआ चाहता है
कोई सर-ए-साहिल जगमगाते
नज़र नहीं आ रहे हैं...
तूफ़ां से बच के डूबी है कश्ती कहां न पूछ,
साहिल भी ए'तिबार के क़ाबिल
नजर नहीं आ रहे हैं...
बुला रहा है आसमाँ हमको लेकिन
मोह मिट्टी से छूटता नहीं
मेज़बान यहां हमको सारे नजर आ रहे हैं..
जो लगते थे सफर में साथी कभी अपने,
आज वो पल्ला अपना हमसे छुड़ाते जा रहे हैं..
उल्टी धारा में जब हम लड़ रहे हैं,
तो क्यों? लोग हमें हौसला देने में कतरा रहे हैं.
जीवन की धारा में बहते जा रहे हैं..