जीवन
जीवन
इस जीवन को जितना समझना चाहा,
उतना ही उलझ गई ।
कैसी पहेली है ये?
जिसे ना मैं सुलझा पाई।।
रंगमंच में हंसते -रोते हम तो हैं ,सिर्फ कठपुतलियां ।
कभी आए, कभी गए रंगमंच से, डोर थामे खींचे उसकी उंगलियां।।
कभी लगता है जीवन सुख का है सागर ।
कभी लगता यह है दुख का दरिया।
पर यह तो अपने कर्मों के फलों को जीने का है सिर्फ एक जरिया
दुःख आएं तो ना घबराना,सुख आए तो ना इतराना ।
सुख -दुख जीवन के दो हैं किनारे।
और हम दोनों को थामें, हैं बहते धारे ।।
जीवन में काली अंधियारी रात है।
उजली सुनहरी सुबह भी है ।।
रेत में तपती जलती गर्मी है ।
ठंडी, शीतल,प्यारी हवाएं भी हैं ।।
दुख- सुख से भरा है यह जीवन ।
बस कष्टों से ना करें कभी दुखी मन।।
इस जीवन को समझना नहीं आसान।
मिला है हमें,बढ़ाएं खुश हो के जीवन का मान ।।
