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Dr.Vineeta Khati

Inspirational

4.5  

Dr.Vineeta Khati

Inspirational

धरती की व्यथा

धरती की व्यथा

1 min
426


कुछ दिन मुझे भी संवरने के पल दो ना।

स्वयं के लिए मुझे भी कुछ क्षण दो ना।

इन पलों में मुझे श्रृंगार करने दो ना।।

मेरे जलधि तट, जो भीड़-भाड़ से नित घिरे रहते हैं।

उन्हें कुछ दिन एकांत ,शांत रहने दो ना।।


मेरे असंख्य पुष्प,जो खिलने से पूर्व ही तोड़ दिए जाते हैं।

उन्हें कुछ दिन डालियों में महकने दो ना।

मेरी लताओं की कोपलें जो खिलने से पहले ही मुरझा जाती हैं, 

उन्हें कुछ दिन लताओं में इतराने दो ना।।

मेरी नदियां निरंतर मलिन हो के बह रही हैं।

 उन्हें अब कुछ दिन निर्मल, निर्झर, अविरल छलकने दो ना।

मेरी वायु में असीमित जहर घुलने लगा है।

उसे स्वच्छ होकर कुछ दिन बहने दो ना।


मेरे कण-कण जो गंदगी से बोझिल हैं।

उन्हें कुछ दिन गंदगी मुक्त रहने दो ना।

मेरे खग -विहग जो कहीं खो गए हैं,वीरानों में।

 उन्हें कुछ दिन घर-आंगनआंगन में चहकने दो ना।

मेरे मूक जीव जो अदृश्य हो गए हैं कहीं, 

उन्हें कुछ दिन स्वतंत्र वन में विचरण करने दो ना।

ना करो इतना ज्यादा हस्तक्षेप मुझ पर ।

मैं कही अस्तित्व विहीन ना हो जाऊं।।

मैं भी चाहती हूं सुकून, शान्ति।


मुझे भी कुछ दिन शान्ति से जीने दो ना।।


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