जीवन पर्व
जीवन पर्व
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जीवन
समेटा नहीं जा सकता
जोड़, घटा, गुणा, भाग के समीकरणों में
बांधा नहीं जा सकता
त्रिभुज, आयत या वर्ग के घेरों में।
हर क्षण
सिमटता बिंदु में
उभरती रेखाओं में
बंटता समय के घटकों में
विचरता निर्बाध निस्सीम गगन में
बिखरता ज्योति पुंज सा अंतरिक्ष में।
निरंतर प्रज्वलित हवन कुंड सा ;
ज्ञान का
उत्तरोत्तर उठता धुआं
लीलता अज्ञान को, आलस्य को
संवारता मनुज को
सराहता मनुज को
निखारता मनुज को
जीवन
अंतहीन पर्व सा।