जीवन का आधार-- पंचतत्व
जीवन का आधार-- पंचतत्व
सृष्टि की रचना में,
भूमि, गगन, वायु, अनल, नीर हैं,
भारतीय संस्कृति में इन्हें,
पंचतत्व जो कहते हैं।
जिन की कृपा से हे मनुष्य,
तुम्हारा हो सका निर्माण।
पहला तत्व भूमि है,
जिसके हैं बहुत उपकार।
मानव जगत करता यहां वास,
पशु पक्षी और जीव जंतु भी,
जिनका है इस पर निवास।
धरती मां सब सहती है,
धैर्य का पाठ पढ़ाती है।
वसुधा की माटी की खुशबू ,
जीवन में खुशहाली लाती है ।
आसमान का न प्रारंभ है,
विस्तृत और अनंत है।
धरती के संरक्षण के लिए,
साया बनकर रहता है।
मेघ आकाश से करते बारिश,
धरा की बुझाते प्यास।
नील गगन स्वतंत्र और चंचल है,
मन की चंचलता का देता आभास।
पवन है जीवन की धारा,
जिसके बिना न जीना संभव।
योग क्रिया में प्राण वायु का,
जिसका हम करते हैं ध्यान।
हवा हर जगह बहती है,
समरसता का पाठ पढ़ाती है।
अग्नि देव के कारण ही,
हर कार्य होता है संभव।
ऊंची उठती ज्वाला से,
प्रगति तेज और निरंतर
कार्य करने की,
शिक्षा हमको मिलती है।
जल का महत्व है बहुत अधिक,
जीवन का अस्तित्व इससे है।
अच्छी फसल के लिये भूमि की,
सिंचाई नीर से ही होती है।
जल के बिना ,
जीने की कल्पना अधूरी है।
जल है तो जीवन है,
जिसे समझना बहुत जरूरी है।
बिना अपेक्षा के कार्य करने की,
यही शिक्षा पंचतत्व हमें देती है।
पंच तत्वों को मिलाकर,
शब्द बनता है भगवान ।
यह है मानव देह का आधार,
जिनकी रचना का हम पर है उपकार।
जगत के अधिष्ठाता प्रभु की,
हम करते पुकार।।
